हमें नारा दिया था, हमें रसायनिक पदार्थ कहा जाता था,
पर हम मिट्टी में दबे बीज थे,
हर वार पर और गहरे धंसे,
हर चोट पर और वर्गीय धंसे थे।
फार्मास्युटिकल्स को खेत बनाया गया,
संघर्ष की मिट्टी में प्याज ओगै,
मटर, लोकी, काली मिर्च, खरबुज़े,
हर आक ने क्रांति की सुगंध दी।
हम लंगरों की रोटियों में इंकला गुंधते हैं,
हमारी हंसी में धरती का संगीत हैं,
हमारे हाथों की रोटियों में इंकला बंधते हैं।
हम दिल्ली की सड़कों को बाग बना देंगे,
हम फर्मों को खेत बना देंगे,
हमारे हल के रूझान बताते हैं-
राजहथ को सिर झुकाना ही होगा।
तुमने जो आग सलगाई थी,
हमने उसे रोशनी बना ली,
तुमने जो दीवार शिखर की थी,
हमने उसे पार कर लिया।
याद दिलाया-
हम अन्नदाता हैं, धरती के संत हैं,
हमें मूर्तिमान करने वाले
कभी राजसिंहासन नहीं बचाएंगे!
एम के आज़ाद
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