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Sunday, March 9, 2025

संगिनी: श्रम और संघर्ष की दोस्त

 

वह कोई परी नहीं, कोई देवी नहीं,
वह संगिनी है, मेरे श्रम की दोस्त,
जो संगी है वहीं रहती है जब दुनिया घूमती है,
मेरे शिष्यों के अनमोल हाथों की रूढ़ियों में अपना हक है।

वह मेरी ताक़त नहीं,
बल्कि मेरी थकान का सहारा है,
जब मेहनत की धूप उगलती है,
तो उसकी छवि मुझे सहारा देती है।

वह मर्दानगी को निखारने नहीं आई,
न किसी राजा की रानी बनने,
वह संघर्ष की आँधी में कंधे से कंधा पुरानी
क्रांति का परचम थमाने आई।

उनके प्रेम में कोई उपहार नहीं,
डीलबाज़ी नहीं,
यह भागीदारी है-
मेरे सपने का हिस्सा, मेरी रोटी का हिस्सा,
मेरे हर किसी पल का पूरा जवाब।

वह किसी महल में पलने वाली रानी नहीं,
न ही चौखट पर छात्रावास वाली, छाया
वह किराए पर, किराए पर, किराए पर
, बारातों में
मेरे छोटे पैमाने पर मेरी अपनी कमाई हुई है।

और मैं भी कोई सरपरस्त नहीं,
न कोई पहरेदार, न कोई मालिक,
मैं बस एक दोस्त हूं,
जो अपने सपनों की इज्ज़त करता है,
जो अपनी उड़ान को अपना कंधा देता है।

हम साथ हैं,
क्योंकि हमारा रिश्ता मजदूरों के सिक्कों से पका है,
क्योंकि हमारा प्यार संघर्ष की मिट्टी से गढ़ा है।

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