एक औरत थी, संतरे बेचती थी,
धूप में, कूड़े में, धूलि पर छींटाकशी थी।
उसकी मेहनत में ईमान था,
शहर के कुछ लोग फिर भी परेशान थे।
किसी ने कहा- "ठग है ये औरतें!"
किसी ने कहा- "बदज़ुबान है!"
पर सच्चाई बस इतनी थी कि
वह मुफ़्त में फल नहीं बांटती थी।
किसी ने कहा- "अहंकारी है!"
किसी ने कहा- "जिद्दी औरतें हैं!"
सच तो यह था कि
वह लोगों के साथ खड़ा नहीं था।
कुछ ने उसे बदनाम कर दिया,
क्योंकि वह किसी से नहीं डरता था,
किसी भी कलाकार के पुतले के प्रेम को स्वीकार नहीं करता था,
किसी भी पुतले की खरीद-फरोख्त से इनकार नहीं करता था।
शहर में रोशनी थी, पर अंधी जगह,
हर किसी से सुना था,
किसी दिल से नहीं देखा था,
क्योंकि सच्चाई देखने के लिए
दिल में सच का पता चला था।
पर वह औरतें हारी नहीं,
वह संतरे बेचती रही,
अपनी मेहनत, अपनी सच्चाई,
और अपने कमरे के साथ।
क्योंकि सच को सच बताने के लिए
हमें पहले खुद के अंदर सच को जलाना है,
और जिसने दिल में सच संजोया है,
वही इस दुनिया की रोशनी को देखेगा।
केम के आज़ाद
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