गुलामी तो तेरी इश्क़ की थी,
वरना ये दिल कल भी सुल्तान था,
आज भी सुल्तान है.
पर अब इश्क़ से आगे देख लिया हमने,
अब मोहोब्बत नहीं, क्रांति का अरमान है।
मंज़िल दूर सही, क़दम नहीं रुकेंगे,
जो रोटियां छीनते हैं, उनका खाता शेष।
जो हमारे ताले पर महल के ताले हैं,
अब उनका इंस्टिट्यूट हिल जाएगा।
हम हैं वो, जो रातों में सर्वे कर रहे हैं,
सुबह की खाकी में इंकलाब बोते रहे।
हम वो हैं,प्रोग्राम वर्क से दुनिया चलती है,
किसी और की भर्ती पर क्लिक करें।
एम के आज़ाद
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